ख्वाहिशें

 सुदृढ़ 'मन' का प्रण या

नादान 'दिल' की फरमाइशें।

सांसो की आंच पर पकती, 

सुलगती और बुझती 'ख्वाहिशें'।।


सांस का 'ईंधन ' बन

जीवन में दम भरें ' ख्वाहिशें '।

कितनी रोज़ उपजे और 

रोज कितनी मरे 'ख्वाहिशें '।।


कुछ लंबी - तगड़ी ख्वाहिशें,

जैसे कोई पहाड़।

कुछ हल्की -फुल्की ख्वाहिशें,

जैसे खुशबू, बादल और फुहार।।


कुछ सुदूर 'महत्वाकांक्षी' ख्वाहिशें

जो कभी हासिल न हो।

कुछ निजी 'स्वार्थी' ख्वाहिशें

जिनमें 'अपने' भी शामिल न हो।।


चांद - तारों को छूने की ख्वाहिश,

तू उसमें  'असफल' है।

हाथ थामे तेरे तकता कोई नभ को,

ये भाग्य भी 'विरल' है।।


रख ख्वाहिशें ऐसी जो 

जीने को 'ज़िंदादिल' कर दे।

छोड़ ख्वाहिशें ऐसी जो 

सीने को 'बोझिल' कर दे।।


माना है कितने गिले - शिकवे' 

और कितनी अनसुनी 'गुज़ारिश' है।

पर तू जो कृतघ्न हो सहज ही जी लेता,

वो 'जीवन' कितनों की ' ख्वाहिश ' है।।।


- अरुणिमा 

२/७/२०२५







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