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Showing posts from January, 2024

सबके राम

 किसी के लिए मूर्ति में राम, किसी के निःस्वार्थ भक्ति में राम।। पिता का अभिमान राम, पत्नी का सम्मान राम। माता का स्नेह राम, भाई -बहनो का नेह राम।। किसी के आदर्श, किसी के साध्य। किसी के आत्मज, किसी के अराध्य।। सृष्टि के कण कण में राम, जीवन के हर क्षण में राम। हर्ष में राम, रुदन में राम, जन्म में राम, मरण में राम।। संघर्ष में राम, उत्कर्ष में राम। जीवन के निष्कर्ष में राम।। तन में राम, मन में राम, आज करोड़ों स्नेह भरे नयन में राम।।।     ।। जय श्रीराम।।

फुर्सत की तंगी

  वक्त के बटुए में आजकल ' फुर्सत ' की तंगी है।। जिम्मेदारियां, कर्तव्य, डेडलाइन्स और कमिटमेंट्स के नोट भरे जा रहे हैं, 'मस्ती' और 'सुकुन' के सिक्के कहीं खामोश कोने में दुबक पड़े हैं।। वक्त के बटुए में आजकल ' फुर्सत ' की तंगी है।। छत पर तौलिया सुखाते 'रेड हेड इंडियन बुलबुल'का घोंसला नज़र आया, बीते वर्ष की तरह वहीं कोना, वहीं पौधा, पीठ दिखाकर बुलबुल नाराज़ सी बोली-  " इस साल मेजबानी फीकी है। नेह से निहारा नहीं"। क्या करें, वक्त के बटुए में आजकल ' फुर्सत ' की तंगी है।। मेज़ पर पड़ी चीज़ें बुला रही हैं। किताबों की एक ढ़ेर - अटलजी की कविताएं, गुलजार की पंद्रह पांच पचहत्तर, दीवाने - ग़ालिब ़़... एक अधूरी चित्रकारी, कुछ अधूरी रचनाएं, ...सब खिसियायी सी, रुठी नज़र आ रही हैं। क्या करे वक्त के बटुए में आजकल ' फुर्सत ' की तंगी है। अंदरुनी चाहत की फिर से वही दस्तक - " चल अदरक  वाली चाय पे मिलते हैं,  कुछ पन्ने टटोलते हैं, कुछ लिखते और गुनगुनाते हैं, एक दोपहर 'आलसी" बिताते हैं"। फिर इस न्यौते को कल के लिए टाल दिया।।