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Showing posts from July, 2025

डिजिटल जीवन

  डिजिटल दौर का इंसान  बौराया, पगलाया, परेशान।। अफ़रा-तफ़री, आनन-फानन  'आनलाइन' और ' आफलाइन ' में बंटा जीवन।। मन में बैठा ' फोमो ' का गहरा डर गिरता - पड़ते, लड़खड़ाते, हांफते 'रेस' में रहने का 'प्रेशर'।। 'रीलस', 'शॉटस' और 'पोस्टस' में हर दिन बीता आनलाइन में रमा हुआ, असल जीवन से लापता।। "माइ लाइफ, माइ च्वाइस" को सहुलियत से अपनाया है  झाड़ बोझ जिम्मेदारी के, कंधे को हल्का बनाया है।। होंठ अब बतियाते नहीं, 'सेल्फी' में 'पाउट' बनाते हैं  'एमोजी' के अंबार में जज़्बात ढूंढे जाते हैं।। रिश्तों में है चुभता सन्नाटा, 'सोशल मीडिया ' पे प्रेम का शोर है  'पर्सनल' जीवन के पलों में " पब्लिक लाइक्स ' बटोरने की होड़ हैं।। 'फिटनेस गोल', 'रिलेशनशिप गोल', :कैरियर गोल' --गोल पे बने गोल  गोल के पीछे ऐसे पागल, जिंदगी हुई डमा डोल।। 'इंफ्लुएंशरस से उधार लेकर अपना 'बकेट लिस्ट' भरते हैं  'कापी कैट' बन 'ट्रेडिंग' चीजों का, कितना फक्र करते हैं।। ...

ख्वाहिशें

 सुदृढ़ 'मन' का प्रण या नादान 'दिल' की फरमाइशें। सांसो की आंच पर पकती,  सुलगती और बुझती 'ख्वाहिशें'।। सांस का 'ईंधन ' बन जीवन में दम भरें ' ख्वाहिशें '। कितनी रोज़ उपजे और  रोज कितनी मरे 'ख्वाहिशें '।। कुछ लंबी - तगड़ी ख्वाहिशें, जैसे कोई पहाड़। कुछ हल्की -फुल्की ख्वाहिशें, जैसे खुशबू, बादल और फुहार।। कुछ सुदूर 'महत्वाकांक्षी' ख्वाहिशें जो कभी हासिल न हो। कुछ निजी 'स्वार्थी' ख्वाहिशें जिनमें 'अपने' भी शामिल न हो।। चांद - तारों को छूने की ख्वाहिश, तू उसमें  'असफल' है। हाथ थामे तेरे तकता कोई नभ को, ये भाग्य भी 'विरल' है।। रख ख्वाहिशें ऐसी जो  जीने को 'ज़िंदादिल' कर दे। छोड़ ख्वाहिशें ऐसी जो  सीने को 'बोझिल' कर दे।। माना है कितने गिले - शिकवे'  और कितनी अनसुनी 'गुज़ारिश' है। पर तू जो कृतघ्न हो सहज ही जी लेता, वो 'जीवन' कितनों की ' ख्वाहिश ' है।।। - अरुणिमा  २/७/२०२५