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शिवाय

 आदि और अंत के काल से परे शिवाय। सब से घिरे हुए, पर सबसे परे शिवाय।। तीनों लोकों में बसा हुआ 'सत्य' शिवाय। विफल हो सारे तर्क - वितर्क, एक अद्भुत 'तथ्य ' शिवाय।। समाधि में लीन, शांत और 'सरल' शिवाय। जटिल दुविधा हो खड़ी तो, पी लें 'गरल' शिवाय।। मस्त भोले भाले से, करुणा से ओतप्रोत शिवाय। अज्ञान ' तम ' को चीर दे जो, वो ' ज्ञान - ज्योत् ' शिवाय।। उमा के संग नृत्य रास रचाते, प्रेम में ' अबोध ' शिवाय। विनाशकारी तांडव का वो भयावह ' क्रोध ' शिवाय।।। शक्ति - उर्जा के संचार के लिए बना हुआ 'आकार ' शिवाय। जितने भी आकार में ढाला, रहे ' निराकार ' शिवाय।। एक पंचाक्षर मंत्र में समस्त सृष्टि समाये। ऊं नमः शिवाय। ऊं नमः शिवाय।।।

अकारण

 अंतर्मन में शूल सा धसा 'चुभन', हर शख्स के शख्सियत का हिस्सा 'चुभन'। इतना 'निजी' कि दिखाया नहीं जाये, 'अनुभव' के ठेस कहते हैं कि किसी को बताया नहीं जाये। दिखा दिया तो, बता दिया तो - कहते हैं कि 'अकारण' है, मन ने बुना है इसे, मन का विचलन है।। शायरों ने कह दिया इतनी सहजता से -  " तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो,  क्या ग़म है जिसे छुपा रहे हो।" कुछ 'अकारण' गमों के लिए तो, मुस्कुराने के भी कारण नहीं आये। न रोना आये, न मुस्कुराया जाये, न शब्दो मे ढाला जाये, न गीतों में गाया जाये।। वजह है या बेवजह। सच है या मनोगढन। निर्लज्ज दुनिया ने दी या अपने आंखों के पानी ने। दी किसी यातना- प्रताड़ना ने या आत्म ग्लानि ने। _हर क्षण कितने वाद-विवाद होते हैं, छोटी सी चुभन में वर्षों के मवाद होते हैं।। 'अकारण' तो होते नहीं ये, सुझ-बुझ के परे कुछ कारण है। दुनिया 'अकारण' बता टाल देती हैं क्योंकि , इनके नहीं कोई 'निवारण ' है।।।।