अकारण

 अंतर्मन में शूल सा धसा 'चुभन',

हर शख्स के शख्सियत का हिस्सा 'चुभन'।

इतना 'निजी' कि दिखाया नहीं जाये,

'अनुभव' के ठेस कहते हैं कि किसी को बताया नहीं जाये।

दिखा दिया तो, बता दिया तो -

कहते हैं कि 'अकारण' है,

मन ने बुना है इसे, मन का विचलन है।।


शायरों ने कह दिया इतनी सहजता से - 

" तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, 

क्या ग़म है जिसे छुपा रहे हो।"

कुछ 'अकारण' गमों के लिए तो,

मुस्कुराने के भी कारण नहीं आये।

न रोना आये, न मुस्कुराया जाये,

न शब्दो मे ढाला जाये, न गीतों में गाया जाये।।


वजह है या बेवजह।

सच है या मनोगढन।

निर्लज्ज दुनिया ने दी या अपने आंखों के पानी ने।

दी किसी यातना- प्रताड़ना ने या आत्म ग्लानि ने।

_हर क्षण कितने वाद-विवाद होते हैं,

छोटी सी चुभन में वर्षों के मवाद होते हैं।।


'अकारण' तो होते नहीं ये,

सुझ-बुझ के परे कुछ कारण है।

दुनिया 'अकारण' बता टाल देती हैं क्योंकि ,

इनके नहीं कोई 'निवारण ' है।।।।





Comments

Popular posts from this blog

A Wonderful Mother-In-Law

मां

The Most Special Mother's Day.