शिवाय

 आदि और अंत के काल से परे शिवाय।

सब से घिरे हुए, पर सबसे परे शिवाय।।


तीनों लोकों में बसा हुआ 'सत्य' शिवाय।

विफल हो सारे तर्क - वितर्क, एक अद्भुत 'तथ्य ' शिवाय।।


समाधि में लीन, शांत और 'सरल' शिवाय।

जटिल दुविधा हो खड़ी तो, पी लें 'गरल' शिवाय।।


मस्त भोले भाले से, करुणा से ओतप्रोत शिवाय।

अज्ञान ' तम ' को चीर दे जो, वो ' ज्ञान - ज्योत् ' शिवाय।।


उमा के संग नृत्य रास रचाते, प्रेम में ' अबोध ' शिवाय।

विनाशकारी तांडव का वो भयावह ' क्रोध ' शिवाय।।।


शक्ति - उर्जा के संचार के लिए बना हुआ 'आकार ' शिवाय।

जितने भी आकार में ढाला, रहे ' निराकार ' शिवाय।।


एक पंचाक्षर मंत्र में समस्त सृष्टि समाये।

ऊं नमः शिवाय।

ऊं नमः शिवाय।।।


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