कृष्ण
बंसी बजैया, रास रचैया, नटखट भोले-वाले मुरारी।
दुष्टो का नाश करने काल बनते है सुदर्शनधारी।।
राधा की प्रीत बने, बने रुक्मणी का अधिकार।
प्यारी सखी द्रौपदी के एक-एक सुत का चुकाया उधार। ।
दुखिया के मुखिया वो, वो है निर्बल का बल।
मीरा का अटूट भरोसा वो, निःसंकोच हो पीया गरल।।
सारे रिश्ते-नाते को निभाते वो, सब मे है बट जाते।
सौप यदु सेना दुर्योधन को, हो निहत्थे पार्थ के सार्थ बन जाते।।
जैसी भावना, जैसी भक्ति, हम उसे उसी रूप मे पाते है।
ढूंढो तो अपने आसपास किसी रिश्ते मे कृष्ण मिल ही जाते है।।।
अरुणिमा
१६-८-२०२५
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