Posts

Showing posts from 2025

कृष्ण

 बंसी बजैया,  रास रचैया, नटखट भोले-वाले मुरारी। दुष्टो का नाश करने  काल बनते है सुदर्शनधारी।। राधा की प्रीत बने, बने रुक्मणी का अधिकार।  प्यारी सखी द्रौपदी के एक-एक सुत का चुकाया उधार। । दुखिया के मुखिया वो, वो है निर्बल का बल। मीरा का अटूट भरोसा वो, निःसंकोच हो पीया गरल।। सारे रिश्ते-नाते को निभाते वो, सब मे है बट जाते। सौप यदु सेना दुर्योधन को, हो निहत्थे पार्थ के सार्थ बन जाते।। जैसी भावना, जैसी भक्ति, हम उसे उसी रूप मे पाते है। ढूंढो तो अपने आसपास किसी रिश्ते मे कृष्ण मिल ही जाते है।।। अरुणिमा १६-८-२०२५

अदृश्य डोर

 कुछ बांधे है मुझे तुझसे, एक महीन सी सख्त डोर। प्रेम का, आस्था का, भावनाओं का, समर्पण और भक्ति का निचोड़। । है बस तेरा आसरा, तू एकमात्र सहाय,  है निर्भय मन मेरा, मेरी रक्षा करे शिवाय। ।।               _ अरूणिमा             ९/८/२०२५

डिजिटल जीवन

  डिजिटल दौर का इंसान  बौराया, पगलाया, परेशान।। अफ़रा-तफ़री, आनन-फानन  'आनलाइन' और ' आफलाइन ' में बंटा जीवन।। मन में बैठा ' फोमो ' का गहरा डर गिरता - पड़ते, लड़खड़ाते, हांफते 'रेस' में रहने का 'प्रेशर'।। 'रीलस', 'शॉटस' और 'पोस्टस' में हर दिन बीता आनलाइन में रमा हुआ, असल जीवन से लापता।। "माइ लाइफ, माइ च्वाइस" को सहुलियत से अपनाया है  झाड़ बोझ जिम्मेदारी के, कंधे को हल्का बनाया है।। होंठ अब बतियाते नहीं, 'सेल्फी' में 'पाउट' बनाते हैं  'एमोजी' के अंबार में जज़्बात ढूंढे जाते हैं।। रिश्तों में है चुभता सन्नाटा, 'सोशल मीडिया ' पे प्रेम का शोर है  'पर्सनल' जीवन के पलों में " पब्लिक लाइक्स ' बटोरने की होड़ हैं।। 'फिटनेस गोल', 'रिलेशनशिप गोल', :कैरियर गोल' --गोल पे बने गोल  गोल के पीछे ऐसे पागल, जिंदगी हुई डमा डोल।। 'इंफ्लुएंशरस से उधार लेकर अपना 'बकेट लिस्ट' भरते हैं  'कापी कैट' बन 'ट्रेडिंग' चीजों का, कितना फक्र करते हैं।। ...

ख्वाहिशें

 सुदृढ़ 'मन' का प्रण या नादान 'दिल' की फरमाइशें। सांसो की आंच पर पकती,  सुलगती और बुझती 'ख्वाहिशें'।। सांस का 'ईंधन ' बन जीवन में दम भरें ' ख्वाहिशें '। कितनी रोज़ उपजे और  रोज कितनी मरे 'ख्वाहिशें '।। कुछ लंबी - तगड़ी ख्वाहिशें, जैसे कोई पहाड़। कुछ हल्की -फुल्की ख्वाहिशें, जैसे खुशबू, बादल और फुहार।। कुछ सुदूर 'महत्वाकांक्षी' ख्वाहिशें जो कभी हासिल न हो। कुछ निजी 'स्वार्थी' ख्वाहिशें जिनमें 'अपने' भी शामिल न हो।। चांद - तारों को छूने की ख्वाहिश, तू उसमें  'असफल' है। हाथ थामे तेरे तकता कोई नभ को, ये भाग्य भी 'विरल' है।। रख ख्वाहिशें ऐसी जो  जीने को 'ज़िंदादिल' कर दे। छोड़ ख्वाहिशें ऐसी जो  सीने को 'बोझिल' कर दे।। माना है कितने गिले - शिकवे'  और कितनी अनसुनी 'गुज़ारिश' है। पर तू जो कृतघ्न हो सहज ही जी लेता, वो 'जीवन' कितनों की ' ख्वाहिश ' है।।। - अरुणिमा  २/७/२०२५

शिवाय

 आदि और अंत के काल से परे शिवाय। सब से घिरे हुए, पर सबसे परे शिवाय।। तीनों लोकों में बसा हुआ 'सत्य' शिवाय। विफल हो सारे तर्क - वितर्क, एक अद्भुत 'तथ्य ' शिवाय।। समाधि में लीन, शांत और 'सरल' शिवाय। जटिल दुविधा हो खड़ी तो, पी लें 'गरल' शिवाय।। मस्त भोले भाले से, करुणा से ओतप्रोत शिवाय। अज्ञान ' तम ' को चीर दे जो, वो ' ज्ञान - ज्योत् ' शिवाय।। उमा के संग नृत्य रास रचाते, प्रेम में ' अबोध ' शिवाय। विनाशकारी तांडव का वो भयावह ' क्रोध ' शिवाय।।। शक्ति - उर्जा के संचार के लिए बना हुआ 'आकार ' शिवाय। जितने भी आकार में ढाला, रहे ' निराकार ' शिवाय।। एक पंचाक्षर मंत्र में समस्त सृष्टि समाये। ऊं नमः शिवाय। ऊं नमः शिवाय।।।

अकारण

 अंतर्मन में शूल सा धसा 'चुभन', हर शख्स के शख्सियत का हिस्सा 'चुभन'। इतना 'निजी' कि दिखाया नहीं जाये, 'अनुभव' के ठेस कहते हैं कि किसी को बताया नहीं जाये। दिखा दिया तो, बता दिया तो - कहते हैं कि 'अकारण' है, मन ने बुना है इसे, मन का विचलन है।। शायरों ने कह दिया इतनी सहजता से -  " तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो,  क्या ग़म है जिसे छुपा रहे हो।" कुछ 'अकारण' गमों के लिए तो, मुस्कुराने के भी कारण नहीं आये। न रोना आये, न मुस्कुराया जाये, न शब्दो मे ढाला जाये, न गीतों में गाया जाये।। वजह है या बेवजह। सच है या मनोगढन। निर्लज्ज दुनिया ने दी या अपने आंखों के पानी ने। दी किसी यातना- प्रताड़ना ने या आत्म ग्लानि ने। _हर क्षण कितने वाद-विवाद होते हैं, छोटी सी चुभन में वर्षों के मवाद होते हैं।। 'अकारण' तो होते नहीं ये, सुझ-बुझ के परे कुछ कारण है। दुनिया 'अकारण' बता टाल देती हैं क्योंकि , इनके नहीं कोई 'निवारण ' है।।।।